प्रतियोगिता – “आह्वान”
विषय – नई पीढ़ी और बदलते संस्कार
बदला जमाना, संस्कार भी बिल्कुल बदल गए
नई पीढ़ी के बच्चे आदर, सम्मान भी भूल गए
घमंड हुआ अमीरी का अहंकार हैं हावी हुआ
संस्कारों के साथ युवा इंसानियत भी भूल गए
रिश्ते सारे आज शॉर्ट फॉर्म में बिल्कुल बदल गए
माता पिता थे जो कहलाते mom dad अब हुए
जहां घरों में के मिलजुल संयुक्त परिवार चलता था
आज उन्हीं घरों के बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रोते हुए गए
पहले घरों पे सुस्वागतम लिखवाते थे बड़े शौक से
आज घरों में कुत्ते से सावधान लिखवाने लग गए
जो हाथ बड़ों को देख खुद ही झुक जाया करते थें
उनके हाथों में फोन आया वाणी में जैसे जहर मिले
दिल हुआ पत्थर का मशीनों में सब अब उलझे हुए
नहीं दिखते अब शिवोम यहां दिए घरों में जलते हुए
कहते आधुनिक खुद को संस्कारों को दफ़न करके
हाथ में सिगरेट और अर्थनग्नता को तोहफे में दिए
नहीं रखी जाती अब रोटियां गाय और कुत्तों के लिए
कहा भरते लोग दिखते भूखों का पेट यहां भरते हुए
देते अगर रोटी भी तो तस्वीर खींच मज़ाक ही बनाते
सच में नई पीढ़ी और बदलते संस्कार बदल ही गए
गिरता हुआ दुप्पटा नारी का और यहां पे अब गिराते
आंखों से ही नारी का अब ये चीर भी हरण कर जाते
प्रेम भी बदनाम हुआ इनके कुकर्मों के खातिर ही यहां
अक्सर ये लोग बंद कमरों में मर्दानगी दिखाने लग जाते
मुश्किल अब दौर हैं मुश्किल उन संस्कारों को ला पाना हैं
हे भगवान ऐसी आधुनिकता से अब तुम्हें मुझको बचाना हैं
मुझे बनना हैं कलयुग का श्रवण कुमार ये सपना पूरा करना
अपने मां बाप के ही चरणों में हे भगवन् मेरी सारी दुनिया हैं
✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय