जरा उनकी भी सोचो ( छोटे कारीगर और विक्रेताओं को समर्पित)

सीरीज 1 l राउंड 1 l प्रतियोगिता 9

ज़रा उनकी भी सोचो
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(छोटे कारीगर और विक्रेताओं को समर्पित)

ज़रा उनकी भी सोचो,
जो धूप में तपकर, छाँव की दुआ करते हैं,
जिनके हाथों की लकीरें तक मिट जाती हैं।

वो जिनकी साँसों में पसीने की ख़ुशबू होती है,
पर आँखों में सपनों का समंदर ठहरा होता है।

कभी वो मिट्टी से मिट्टी को गढ़ते हैं,
तो कभी, धागों से उम्मीदें बुनते हैं।

लोगों के घरों के लिए दिया बनाते हैं,
चाहे अपने आँगन में अंधेरा सहते हैं।

वो जो फेरी लगाकर मुस्कान बेचते हैं,
हर ग्राहक के चेहरे में उम्मीद देखते हैं।

ना उनका बाज़ार बदलता है,
ना ही वक़्त का कोई व्यवहार।
पर फिर भी वो हर सुबह नए
इरादों के साथ उठते हैं बार-बार।

कभी ठंडी सड़कों पर सब्ज़ियाँ सजाते हैं,
तो कभी मेले में रंगों से सबका दिल लुभाते हैं।

उनकी उँगलियाँ सृजन का प्रतीक हैं,
उनकी मेहनत हर त्योहार का संगीत है।

ज़रा उनकी भी सोचो,
जिनके होंठों पर थकान नहीं, दुआ है,
जिनकी आँखों में एक उम्मीद की
लौ जलती, सदा है।

इनमें से है कुछ, जो झोले में दुनिया उठाए चलते हैं,
मगर फिर भी किसी से मुस्कान, उधार नहीं लेते हैं।

हम सभी ये कहते हैं उनसे “कितना महँगा है!”
कभी सोचा उन्होंने उस दाम में अपना कल बेचा है।

हर वस्तु जो हम सब अपने घर लाते हैं,
उसमें किसी का सपना लिपटा होता है।

तो ज़रा ठहरो,
जब अगली बार सौदे पर बात करो,
उनके मन की कीमत को भी समझो —
ज़रा उनकी भी सोचो।

— सुनील मौर्या
Group D

इस कविता में प्रयुक्त प्रमुख अलंकार हैं —
1. अनुप्रास अलंकार —
एक ही ध्वनि की मधुर पुनरावृत्ति से लय बनी है।
✦ “मिट्टी से मिट्टी को गढ़ते हैं”,
✦ “धागों से उम्मीदें बुनते हैं”।
2. रूपक अलंकार —
प्रत्यक्ष तुलना से भाव गहराते हैं।
✦ “आँखों में सपनों का समंदर ठहरा होता है”,
✦ “मेहनत हर त्योहार का संगीत है”,
✦ “उम्मीद की लौ जलती सदा है”।
3. व्यंजना अलंकार —
जहाँ भाव संकेतों के माध्यम से प्रकट हुआ है।
✦ “उन्होंने उस दाम में अपना कल बेचा है” —
यहाँ ‘कल’ का आशय जीवन और भविष्य दोनों से है।
4. यमक अलंकार —
एक ही शब्द के दो अर्थ से उत्पन्न सौंदर्य।
✦ “मिट्टी से मिट्टी को गढ़ते हैं”।
5. श्लेष अलंकार —
एक ही पंक्ति से दो अर्थ झलकते हैं।
✦ “मुस्कान उधार नहीं लेते” —
आत्मसम्मान और आत्मबल, दोनों का संकेत।
6. पुनरुक्ति-प्रयोग अलंकार —
एक ही वाक्यांश का दोहराव भाव को दृढ़ करता है।
✦ “ज़रा उनकी भी सोचो” —
यह कविता का संदेश और आत्मा दोनों है।

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