Category: Hindi kavita

ख्वाहिशें

*ख्वाहिशें* कभी ये रूठे , तो कभी मनाने आती है, दूर जाकर तो कमी महसूस कराती है। ये ख़्वाहिशें भी अजीब सी मलिका हैं, दिल के दरबार में कोई तानाशाहिका हैं। कभी ख्वाबों को ये सोने नहीं देती, और कभी उम्मीदों में रंग भर देती। साथ हो ये तो मौसम भी मुस्कुराता है, ना हो […]

विषय : सखी,वो कह कर जाते…

विषय : सखी,वो कह कर जाते… दिल ए मकां सुना,ख़्वाब सताते हैं बेचैनी का घर,मेरा पता बताते है… किस ओर ढूंढू, हर राह टकती है, तुम चले गए,कोई पहेली लगती है… .. दर्पण से मेरी बातें,रातें काली है, चुप्पीयाँ चीखती, तुझे पुकारती हैं… दिन प्रतिदिन ओर टूटती जाती मैं, अच्छा होता,सखी,वो कह कर जाते… .. […]

सखी, वो कह कर जाते

प्रतियोगिता – काव्य के आदर्श विषय – सखी, वो कह कर जाते रचयिता – सुनील मौर्य चरण – सेमी फाइनल सखी, वो कह कर जाते —————————- सखी, वो कह कर जाते, लौटेंगे फिर सावन में, सूनी आँखें हैं भर जातीं, यादों के उस बंधन में। द्वार खुला था सारा दिन, राहों पर नयन टिकाये, साँझ […]

सखी वो कह कर जाते…

सखी वो कह कर जाते… सखी, वो कह कर जाते, बस एक बार मुड़ कर मुस्कुरा ही जाते। मैंने तो हर बार उन्हें अपनी खामोशी में पुकारा, पर वो हर बार जैसे दूरियों में और खोते गए। ना कोई अलविदा, ना कोई वजह बताई, बस निगाहें झुकी और यादें रह गईं। मैं वहीं बैठी थी […]

सखी वो कह कर जाते

*सखी, वो कह कर जाते* (दो सखियों के बीच संवाद) व्याह रचाया और फिर सखी, छोड़ दिया, सुहाग ने ज़िंदगी को कैसा मोड़ दिया। मैं तो नहीं रोकती, गर उनको जाना ही था, वो ही एक थे जिनको अपना माना था। क्या हुआ कि मैं आधुनिक नहीं हूँ बताओ, क्या है मेरी सौत में? मुझे […]

सखी, ‌वो कह कर जाते

सखी, वो कह कर जाते… सखी, वो कह कर जाते, फिर मिलने का वादा वो करते। दिल में सपनों की लौ वो जलाते, पर दूर कहीं अचानक वो खो जाते। सखी, वो चुपके से मुस्कुराते, बातों में अपनापन वो लाते। यादों के मोती दिल में वो बोते, पर हमें अकेला वो छोड़ जाते। सखी, वो […]

वो तोड़ती पत्थर

🪒 वो तोड़ती पत्थर🪒 धूप की मार सहती थी, फिर भी कभी न हारी, छांव मिली नहीं जीवन में, पर उम्मीद थी सारी। पत्थरों से भिड़ जाती थी, जैसे कोई जंग लड़ती, हर चोट पे मुस्काती थी, जैसे खुद को परखती। गोद में बच्चा भूखा था, पर रोटी नहीं थी पास, आँखों में नींद नहीं […]

वो तोड़ती पत्थर

प्रतियोगिता : काव्य के आदर्श विषय : वो तोड़ती पत्थर जिम्मेदारीयाँ घर की उसने उठा रखी है, वो तोड़ती पत्थर,दो निवाला कमाती है… .. हाथों में छाले,वो सारी रात कराहती है, दो बच्चे हैं, बस उन्हें देख मुस्कुराती है… .. सूरज भोर करे,उससे पहले उठ जाती है, चूल्हा-चौका,भगवान को सर झुकाती है… .. देखती है […]

kavita pratiyogita

कविता प्रतियोगिता : काव्य के आदर्श शीर्षक :   “वो तोड़ती पत्थर ” अपने हाथों की नाज़ुक सी कलाइयों से , हथौड़ा उठा निरंतर प्रहार करती हुई सी वो तोड़ती रही पत्थर,अविरल बस खड़ी हुई सी । यकायक नजरें पड़ी जब उसकी अपनी उस टूटे छप्पर के मकान पर साफ दिखाई दी उसके चेहरे पर चिंता की […]