प्रतियोगिता – काव्य के आदर्श विषय -वो तोड़ती पत्थर वो तोड़ती पत्थर, धूप में तपती हुई, हिय के छालों पर , संघर्ष को रखती हुई, नयन नहीं रोते, मगर दिल ज़ार ज़ार रोता है, हर चोट पे हथौड़े की, जैसे कोई सपना खोता है, छाले हैं भरे हाथों में, मगर वो रुकती नहीं है, जैसे […]
Category: Hindi kavita
वो तोड़ती पत्थर
विषय – ‘ वो तोड़ती पत्थर ‘ वो तोड़ती पत्थर, मग़र खुद न टूटी, हर चोट सहती मग़र वो नहीं रूठी, छांव की आस मे धूप सी तपती, घर की रोटी खातिर जंग है रोज़ करती। हाथों मे छाले फिर भी शिकवा नहीं करती, सन्नाटो से रोज़ वो एक जंग सी लड़ती, ना पूछे कोई, […]
अपना एक आशयाना
विषय….. काव्य का आर्दश, शीर्षक…. अपना एक आशयाना, भाषा… हिंदी, कविता, शैली… स्वैच्छिक काव्य, ज्ञान, नो मार्किग… तिनका तिनका जोड़ कर, अपना एक आशयाना बना लिया, हिम्मत न हारी हूं मै, मै वो एक चिड़िया हूँ,, जिसने अपना ठिक ना बना, बहती पानी का वो किनारा, जिसे मैं ढूढ रही हूँ, वो वृक्ष पेड़ की […]
वो तोड़ती पत्थर
प्रतियोगिता….. काव्य का आर्दश, विषय…. वो तोड़ती पत्थर, भाषा…. हिंदी, कहानी विधा….. स्वैच्छिक काव्य, ज्ञान, राउड… टू औरत की महानता है, करती है हर कार्य, धूप न देखे न छाँव न देखे, करती है हर कार्य,, तपती धूप में सुलझती, फिर भी किसी के न कुछ कहती, दिन रात व मेहनत करती, फिर भी सब […]
वो तोड़ती पत्थर
वो तोड़ती पत्थर धूप में तपता बदन, फिर भी छांव की उम्मीद लिए, हर वार हथौड़े का, जैसे किस्मत से जंग किए। कंधे से बंधा बच्चा, कभी हँसे, कभी रो दे, माँ की आँखों में चमक हो, या थकावट का मोड़ ले। ना शिकवा है, ना कोई आह, उसके सपनों में बस है – बच्चों […]
वो तोड़ती पत्थर
वो तोड़ती पत्थर वो तोड़ती पत्थर — पर मन उसका न टूटा, हर वार में छिपा था सपना अधूरे लम्हों का। धूप की चादर ओढ़े, पसीने में भीगती रही, ज़िंदगी के प्रश्नों को हथौड़े से सींचती रही। न कोई प्रश्न पूछा उसने, न किसी से चाही दया, बस चुपचाप सहती रही, सहनशीलता बन गया न्याय। […]
वो तोड़ती पत्थर
*”वो तोड़ती पत्थर”* (*एक विधवा की स्थिति*) देखा है मैंने आज एक विधवा को, पेट की खातिर पहाड़ तोड़ते हुए। गोद में बच्चा, हाथों में कुदाल, घर-परिवार का इससे क्या बुरा हाल? धूप भी तेज, बारिश मूसलधार, गरीबी से बढ़कर नहीं कोई धिक्कार। पेट और बच्चों के लिए करना है काम, विधवा है तो क्या, […]
अब यह चिड़िया कहां रहेगी
नमन अल्फाज-ए-सुकून🙏🏻 विषय:- “*वो तोड़ती पत्थर*” वो तोड़ती पत्थर, छाँव से कोसों दूर, पैरों में छाले, आँखों में नूर चूर। ना भाग्य लिखा, ना किस्मत का राग, हर चोट में छिपा, बेबसी का फाग। माथे पे लहराता पसीने का पहाड़, जिस पर न कोई कविता, न कोई अख़बार। चूड़ियाँ खनकती थीं अब हथौड़े में, बिंदी […]
वो तोड़ती पत्थर
प्रतियोगिता – काव्य के आदर्श द्वितीय चरण विषय – वो तोड़ती पत्थर वो तोड़ती हैं पत्थर साथ कलेजा भी जलाती हैं एक हाथ मारती चोट एक से स्तनपान कराती हैं स्त्री भी कितनी मजबूती से बनी होती हैं शिवोम स्वावलंबी खुद बन वही बच्चों को भी सिखाती हैं खड़ी दुपहरी में चमकाती हैं वो मेहनत […]
अब ये चिड़िया कहाँ रहेगी
प्रतियोगिता – काव्य के आदर्श विषय – अब ये चिड़िया कहाँ रहेगी पीहर की डाल से उड़ चली चिड़िया, मन में सपनो का घर बसाए, आंखों में अश्रु और भारी मन , कोई नहीं जो धीर बंधाए , नई दुनिया और नई डगर है , नए लोग और नया सा घर है, छूट गया है […]
