Category: Hindi Shayari

मैं समय से शिकवा नहीं करता…

मैं समय से शिकवा नहीं करता —प्रशांत कुमार शाह जो किस्मत में है, वो कहाँ जाएगा, वक़्त आने पर ख़ुद चलकर आएगा। अब किसी बात का मलाल नहीं, इसलिए मेरा कभी बुरा हाल नहीं। मेहनत करता हूँ, फल की चिंता नहीं, जो ना मिले, उस पर कोई हिंसा नहीं। मैं समय से शिकवा नहीं करता, […]

में समय से शिकवा नहीं करती

प्रतियोगिता: बोलती कलम (जहां हर शब्द बोलता है) टॉपिक: मैं समय से शिकवा नहीं करती मैं समय से शिकवा नहीं करती, बस दिल के टुकड़े संभालती हूँ। जिन राहों पे मुझे दर्द ही मिलता है, उन रहो पर भी मुस्कुराती हूँ। मेरे हर आंसू के पीछे एक दास्तान है, चुप रहकर वो दास्तान में खुद […]

अजबनी अपने ही घर में..

प्रतियोगिता : बोलती क़लम विषय : अजनबी अपने ही घर में हम अजनबी अपने ही घर में हो गये, बा-ख्याल इश्क़ में यूँ बर्बाद हो गये… .. कमरे की दीवारों-दर चीखते रह गये, ख़्वाब ख़ाक हुये, हम देखते रह गये… .. उनसे क्या कहे, सोचते ही रह गये, कुछ घाव फिर यूँ, नासूर ही रह […]

अजनबी अपने ही घर में

तेरी बातों में आ कर रख दिया है, ले, हमने दिल जला कर रख दिया है। जहाँ पर बे-कली थी, उस जगह पर किसी ने सब्र ला कर रख दिया है। वो तेरा हिज्र है कि जिसने कमरा किताबों से सजा कर रख दिया है। तेरी तस्वीर लगनी थी जहाँ पर, वहाँ शीशा लगा कर […]

अजनबी अपने ही घर में

कभी की जिन दीवारों से बात, आज वो भी लगती हैं अनजान। जहाँ हँसी गूंजा करती थी, अब बस खामोशी का है सामान। क्या आज मुझसे है सभी परेशान, “अजनबी अपने ही घर में” क्यों में बन गई एक अजनबी मेहमान? अपनों की मुस्कानें जो कभी खिलती थीं, अब वो फीकी और बेमन सी लगती […]

दरख़्त

दरख़्त जैसे रिश्ते थे, हर शाख़ में बहार, अब हर सदा में तन्हाई है, दिल में है गुबार। एक दरख़्त की छाँव में, मिलते थे सब सबा, अब हर कोई जुदा है, बस हैसियत का ख़ुमार। जड़ें थीं जो मोहब्बत की, अब सूखती सी लगें, रिश्तों की नमी ग़ायब, दिल भी है ख़स्ता-ए-कार। माँ-बाप की […]