प्रतियोगिता: “बोलती कलम” टॉपिक: “कलम की धार तलवार से तेज़” “कलम की धार, तलवार से तेज़”, इसकी नोक से निकले जो अल्फ़ाज़, बदल दे ये दुनिया, जगा दे आवाज़। बीती सदियों का क्या होता निशान, अगर न होती ये अक्षरों की ज़ुबान। कलम न लिखती गर इतिहास, तो गुम हो जाता हर एक राज़। तलवार […]
Category: Hindi Shayari
कलम की धार,, तलवार से तेज़
विषय _____कलम की धर,,, तलवार से तेज़ कलम की नोक में जबसे ये धार आई है तेज़ धार की तलवार डगमगाई है सलीका हमको बताया हिसाब करने का हमारे हक में जो होने लगी बुराई है तमाम हटने लगे चार साज़ी से पीछे जब अपने हक में हमने कलम उठाई है जब से समझ आई […]
मैं समय से शिकवा नहीं करता
खुला आसमान फिर भी यादों के बादल घेरे हुए हैं, चंद्रमा है आकाश में फिर भी रात में अंधेरे हुए हैं, देखता हूं तो कुछ दिखता नहीं मुझे कुछ शायद ये, सच है यार इन आंखों में बस तुम्हारे ही डेरे हुए हैं।। देखो काली रात के बाद से आज सुंदर सबेरे हुए हैं, इनकी […]
मैं समय से शिकवा नहीं करता
विषय ____मैं समय से शिकवा नहीं करता अच्छा ,उसके दिल को रुसवा नहीं करता ,,,,,,मैं समय से शिकवा नहीं करता रोज़ रो रो कर गुज़ारता है वो राते फिर कहता ,,मै समय से शिकवा नहीं करता बचपन था तो मांगा करता था जवानी और कहता ,,मै समय से शिकवा नहीं करता आई जवानी तो चाहा आ जाए बचपन और कहता,, […]
मैं समय से शिकवा नही करता
प्रतियोगिता : बोलती क़लम विषय : मैं समय से शिकवा नही करता अमूमन में दिल की बातें नही करता, युहि हर किसी पे यकीन नहीं करता… तुम्हें हिज्र समझ आता है क्या,बोलो, बसर मैं शरीरों से तालुक नही करता… .. वक़्त कैसा भी हो,तौहीन नहीं करता, कभी मैं समय से शिकवा नही करता… किरदार समझा,युहि […]
मैं समय से शिकवा नहीं करता…
मैं समय से शिकवा नहीं करता —प्रशांत कुमार शाह जो किस्मत में है, वो कहाँ जाएगा, वक़्त आने पर ख़ुद चलकर आएगा। अब किसी बात का मलाल नहीं, इसलिए मेरा कभी बुरा हाल नहीं। मेहनत करता हूँ, फल की चिंता नहीं, जो ना मिले, उस पर कोई हिंसा नहीं। मैं समय से शिकवा नहीं करता, […]
में समय से शिकवा नहीं करती
प्रतियोगिता: बोलती कलम (जहां हर शब्द बोलता है) टॉपिक: मैं समय से शिकवा नहीं करती मैं समय से शिकवा नहीं करती, बस दिल के टुकड़े संभालती हूँ। जिन राहों पे मुझे दर्द ही मिलता है, उन रहो पर भी मुस्कुराती हूँ। मेरे हर आंसू के पीछे एक दास्तान है, चुप रहकर वो दास्तान में खुद […]
अजबनी अपने ही घर में..
प्रतियोगिता : बोलती क़लम विषय : अजनबी अपने ही घर में हम अजनबी अपने ही घर में हो गये, बा-ख्याल इश्क़ में यूँ बर्बाद हो गये… .. कमरे की दीवारों-दर चीखते रह गये, ख़्वाब ख़ाक हुये, हम देखते रह गये… .. उनसे क्या कहे, सोचते ही रह गये, कुछ घाव फिर यूँ, नासूर ही रह […]
अजनबी अपने ही घर में
तेरी बातों में आ कर रख दिया है, ले, हमने दिल जला कर रख दिया है। जहाँ पर बे-कली थी, उस जगह पर किसी ने सब्र ला कर रख दिया है। वो तेरा हिज्र है कि जिसने कमरा किताबों से सजा कर रख दिया है। तेरी तस्वीर लगनी थी जहाँ पर, वहाँ शीशा लगा कर […]
अजनबी अपने ही घर में
कभी की जिन दीवारों से बात, आज वो भी लगती हैं अनजान। जहाँ हँसी गूंजा करती थी, अब बस खामोशी का है सामान। क्या आज मुझसे है सभी परेशान, “अजनबी अपने ही घर में” क्यों में बन गई एक अजनबी मेहमान? अपनों की मुस्कानें जो कभी खिलती थीं, अब वो फीकी और बेमन सी लगती […]