दरख़्त जैसे रिश्ते थे, हर शाख़ में बहार, अब हर सदा में तन्हाई है, दिल में है गुबार। एक दरख़्त की छाँव में, मिलते थे सब सबा, अब हर कोई जुदा है, बस हैसियत का ख़ुमार। जड़ें थीं जो मोहब्बत की, अब सूखती सी लगें, रिश्तों की नमी ग़ायब, दिल भी है ख़स्ता-ए-कार। माँ-बाप की […]