Jay ghosh – swaron ka utsav

सीरीज १
प्रतियोगिता ३
शीर्षक ( मैं ही परिवर्तन)

नव भारत के उत्थान का लिए सुदृढ़ समर्थन
दिव्य, तेजस मूल रूप से बनता सार्थक सृजन

क्यों ढूंढे कहीं ओर तू जब मिलता कहीं अंतर्मन
बढ़ता चल निरन्तर,निहित जब स्वयं में ही परिवर्तन।

युग बदले बदले इंसान , गर कभी न
जो बदला वो कहलाए महान ।

तुझमें है तूफानी सी तेज रफ़्तार
जिससे तर जाएगी तेरी नैया पार ।

क्यों डरना ,भागना परिस्थितियों से जब
निहित हो परिवर्तन में ही नव साज ।

कला , संस्कृति,समाज और परिवार
दोहराते जाएंगे एक नव निर्माण ।

दर्शाते जो अपनी हर एक झलक में नवीनता
तो कहीं प्राचीन खोह में अनेक प्रमाणों युक्त इतिहास।

परिवर्तन की अनेक कलाएं,
जिनको सभी समझते जाएं ।

कभी करते खुशी से स्वीकार
तो कहीं बनाए पल में तकरार ।

स्वयं को जानो खुद पहचानो
साथी स्वयं को अपना तुम मानो ।

जब मन में उठे समर्पण का भाव
परिवर्तन की चाह को रखो पास ।

रखो बुलंद अपने इरादे ,
सार्थक बदलाव को बन अर्जुन तू साध ।

क्रांति की अलख जगाएंगे, परिवर्तन से
हम मिलजुलकर , प्रगतिशील राष्ट्र बनाएंगे।

शिक्षा है मूल परिवर्तन का उद्देश्य
जिसको पाना हो सबका ध्येय।

बस एक ही बात समझाती है ये कलम
स्वयं में झांको और लाओ समाज में केवल सार्थक परिवर्तन।
स्वाति सोनी
स्वाति की कलम से ✍️

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