प्रतियोगिता-शब्दों की ताकत – कलम से आवाज तक
सीरीज एक- (प्रतियोगिता दो)
शीर्षक- कलम बनाम तलवार
रुचिका जैन
अल्फाज़ ए सुकून
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जब से मैंने कलम उठाई,
जगत की नहीं सुन रहीं,
मेरी स्याही,
सिर उठाकर जी रहीं हूँ मैं,
बेखौफ,बेबाक, लेकिन,
स्वतंत्र होने के इंतजार में,
छोटी से देखती थी जुर्म होते,
समाज में न कोई मकसद न,
कोई आवाज थी कानों में,
हाथों में तलवार समान कलम
पकड़ाई माँ के जज्बातों ने,
कानून का भक्षक नहीं रक्षक,
बनाया मुझे कानून की किताबों ने,
कलम को चलाती हूँ मैं तलवार,
समझ कटघरे में खड़े उन पापियों,
के लिए,
मासूम बच्चियों को जीने का,
अधिकार नहीं?
कश्मीर की वादियों में साँस लेने,
का अधिकार नहीं?
कानून हैं पर उस पर जनता,
का विश्वास नहीं?
रोड एक्सीडेंट में सजा हैं पर,
करवाई नहीं?
रेप केस के कानून सख्त हैं,
कानून,की धारा क्या?
उसका पता नहीं?
क्यूँ? प्रश्न बहुत है सवाल नहीं ,
कलम चलाई तलवार नहीं,
कलम पकड़ाई इंसाफ़ नहीं,
कैसे कहूँ अब कलम तेज हैं.. ??
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ,
पंडित भयों न कोई….!!
कोई उसूल बनाएँ अब जो काट दे
कलमों से अवसाद के पेड़,
जुल्मों की न लिखीं जाये किताबें,
कलम से तेज़ सुनायीं जाये सजाये,
तब जानी जायेगी कलम और,
कलमकारी की धारे…!!
कल तक थी कलम की धार तेज,
अब बिक गई रफ़्तारे जो बोले वहीँ ,
लिखूं मैं कलम से नहीं पलटति अब,
सरकारें ईमान धर्म सब बिका हो,
जहाँ क्या काम आयेंगी अब
कलम या तलवारें,
अवाम जागोअब कामआयेंगी, तुम्हारीसाँसे ….!!!
रुचिका जैन 🙏
अल्फाज़ ए सुकून