कविता प्रतियोगिता : काव्य के आदर्श
शीर्षक : “वो तोड़ती पत्थर ”
अपने हाथों की नाज़ुक सी कलाइयों से , हथौड़ा उठा
निरंतर प्रहार करती हुई सी
वो तोड़ती रही पत्थर,अविरल बस खड़ी हुई सी ।
यकायक नजरें पड़ी जब उसकी
अपनी उस टूटे छप्पर के मकान पर
साफ दिखाई दी उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें
पर वो अडिग कार्य करती रही सीना तान कर ।
एक और अपने मासूम बालक की भूख
और पति के बीमारी की बात
एक ही पल में भांप गई उसके भाग्य में लिखी
मार्मिक स्याह भरी वो रात ।
कैसे उस रात ने उसकी बस्ती थी उजाड़ी
जब आया था ,वो भयावह तूफान
जिसकी अविरल गति ने कितनों की
जिंदगियों की राह मोड़ी ।
डूबी रही वो कर्जों तले धरती पर
गर मेहनत और कर्तव्य के पथ की लगन
उसने नहीं कभी भी छोड़ी ।
अपने परिवार के खातिर आख़िर दम तक वो लड़ती रही
हां वो तोड़ती रही पत्थर, आख़िर गरीबी उसकी राह को जकड़ी रही ।
स्वाति सोनी ✍️
द्वितीय चरण ।