शब्दों से समाज में बदलाव
प्रीतियोगिता २ : फाइनल चरण
शब्दों में एक प्रवाह है, जो विचारों को जन्म देता है,
विचार ही बदलाव का आधार हैं।
जब एक स्वतंत्रता सेनानी ने नारे दिए,
तो आज़ादी का उद्घोष गूंज उठा
“सरफरोशी की तमन्ना” से लेकर
“जय हिंद” तक, हर दिल जुड़ उठा।
जब शब्द एक अध्यापक ने चुने,
तो अच्छे भविष्य का निर्माण हुआ,
ज्ञान की रोशनी से अंधकार छटा,
हर शिष्य में नया आत्मसम्मान बढ़ा ।
जब शब्दों ने जातिसूचक बन कर,
बाँटने की लकीर खींची,
तब संगीत ने, मधुरता ने
मरहम की तरह पीड़ा सींची।
संतों की वाणी जब हम तक पहुँची,
तो समाज में सौहार्द की बयार चली,
शब्द एक “ओंकार” बना,
जो सुबह की नयी गूँज बन खिला।
जब आशावादी शब्दों का चयन हुआ,
तो स्वयं में औरों में ऊर्जा का संचार हुआ,
लेकिन जब वही शब्द नकारात्मक हो गए,
तो राहें उलझ गईं, सपने खो गए।
शब्दों से ही झलकता है व्यक्तित्व,
और व्यक्तित्व से बनता है समाज,
इसलिए शब्दों का हो सदुपयोग,
तो समाज पा जाए एक नया रूप ।
किरण बाला
नई दिल्ली