सीरीज वन
प्रतियोगिता 4
नाम. “शब्दों की माला”
टॉपिक. “समय की परछाइयां
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चुपके चुपके कोई बोला था,
मैंने कान लगाकर सुना था,
हौले से एक आवाज़ थी आयीं,
भीतर की थी वो एक गहराई ,
बोली सुन मैं तो हूँ तेरी परछाई,
मैंने उसकी आवाज़ थी दबायी,
फिर एक रोज़ वो मेरे तकिये पर
आयी,
बोली सुन मैं हूँ तेरी एक सच्चाई,
सुबह से शाम मैंने ऐसे ही बिताई
नहीं सुननी थी मुझे सच्चाई,
अभी पैसा बहुत कमाना था,
फिर ये तो नया जमाना था,
जगत जीतकर कदमों में लाना था
फ़तह का पंचम लहराना था,
फिर किसको जानना थी सच्चाई,
झूठ सच का आईना जमाना को
दिखाना था,
किसको कर्मों का गुणगान गाना था,
कौन देखता है यहाँ कर्म किसी के,
अहंकार मद में डूबा मैं समय की
परछाईयों से ही तो पीछा छुड़ा कर
दूर जाना था,
आज मैं हूँ और हैं मेरी सच्चाई,
मेरा समय और परछाई,
समय की परछाईयों को कैसे,
दूर करूँ मैं अब खुद से,
समय की सच्चाई और परछाई,
कितना भी भाग लो तुम दूर इनसे
एक दिन फिर बोलेगी वो तुम से
नहीं छूट सकतीं समय की परछाई,
समय ही समय है आज मेरे पास,
मेरा तकिया और है समय की
परछाइयाँ,
रुचिका जैन
एकल राउंड
अल्फाज़ ए सुकून