वो तोड़ती पत्थर वो तोड़ती पत्थर — पर मन उसका न टूटा, हर वार में छिपा था सपना अधूरे लम्हों का। धूप की चादर ओढ़े, पसीने में भीगती रही, ज़िंदगी के प्रश्नों को हथौड़े से सींचती रही। न कोई प्रश्न पूछा उसने, न किसी से चाही दया, बस चुपचाप सहती रही, सहनशीलता बन गया न्याय। […]