*अजनबी अपने ही घर में* जब तक जेब में पैसा रहा, मैं घर की शान हुआ करता था। आज हालात क्या बदल गए, अपने ही अजनबी में बदल गए। लोगों की आवाज़ बहुत काटती है, बददुआएँ भी साथ चलती हैं। फिर भी चुप हूँ, अपने काम में, शामिल हूँ ख़ुद इस अंजाम में। दर्द है […]
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दरख़्त
कुछ इस क़दर खड़ा हूँ मैं, कि खुशियाँ देने चला हूँ मैं, कुछ नहीं मेरा अपना जग में, बस, खुद में मस्त हूँ, दरख़्त हूँ। जब तक ज़िंदा रहा, जीवन दिया, अपनी पत्तियों के साथ, उपवन दिया, काट ही दोगे तो क्या कहूंगा ख़ुद से, बस इतना कि पस्त हूँ, दरख़्त हूँ। ना धूप से […]