हुस्न की तारीफ़ में, न जाने कितनी ग़ज़लों को नाम मिला… लब-ओ-रुख़सार से, नज़्म-ए-जमाल का पैग़ाम मिला… पर्दे में रख्खा उन्हें… मगर रज़ कहाँ रज़ रहा… हर कोचे-कोचे में… उनके जल्वा-ए-गुलफ़ाम मिला… वो दिखती हैं क़यामत… या क़यामत ढलती है उनसे… दीदार-ए-नाज़नीं से… आफ़ताब-ए-गुलिस्ताँ मिला… सौदा-ए-दिल में… आशिक़ नियाज़ बे-ख़ुद-ओ-मस्त हुआ… साक़ी-ए-निगाह से… हर दम […]

