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हुस्न

हुस्न की तारीफ़ में, न जाने कितनी ग़ज़लों को नाम मिला… लब-ओ-रुख़सार से, नज़्म-ए-जमाल का पैग़ाम मिला… पर्दे में रख्खा उन्हें… मगर रज़ कहाँ रज़ रहा… हर कोचे-कोचे में… उनके जल्वा-ए-गुलफ़ाम मिला… वो दिखती हैं क़यामत… या क़यामत ढलती है उनसे… दीदार-ए-नाज़नीं से… आफ़ताब-ए-गुलिस्ताँ मिला… सौदा-ए-दिल में… आशिक़ नियाज़ बे-ख़ुद-ओ-मस्त हुआ… साक़ी-ए-निगाह से… हर दम […]

आदमी चुतिया है.

आदमी चुतिया है… बीवी को कहे — घर बैठ, “बहू का धर्म है चुप रहना”, खुद चले क्लब में ठुमके लगाने, और कहे — “मर्द का तो हक़ है जीने का!” आदमी चुतिया है… बेटा फेल हो तो बोले — “सिस्टम ही सड़ा हुआ है!” पड़ोसी की बेटी टॉपर हो जाए, तो बोले — “कुछ […]