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भीड़ में रहकर अकेले हैं

*भीड़ में रहकर अकेले हैं* ( आज के समाज और संस्कार पर तंज़) बदल गया दौर देखो अब एक पल में, खूबसूरत लम्हे बीत गए गुज़रे कल में। नानी और दादी का घर बहुत वीरान है, बच्चे और युवा इंटरनेट के लिए कुर्बान हैं। हाथों-हाथ मोबाइल फोन, कैसा मंजर है, जानने वाले हैं बहुत, पर […]

नेता बदलते हैं, नीयत नहीं

*नेता बदलते हैं, नीयत नहीं* आज़ाद भारत में रहते हैं हम, ख़ुद को आज़ाद कहते हैं हम। पर विकास का पैमाना क्या है? नई युग और नया ज़माना क्या है? सदियों पुरानी इमारत ज़िंदा है, और आज के मकान शर्मिंदा हैं। मेडिकल का हाल वही पुराना है, बुखार के अलावा क्या जाना है? स्कूल, कॉलेज […]

न्यूज एंकर बनाम न्यूज

*न्यूज़ एंकर बनाम न्यूज़* क्या है, जो अब जाना जाए, और किसे सत्य माना जाए? सब तो मन से हैं, बस बोलते, और विपक्ष को हैं, बस रौंदते। जनतंत्र का आधार है मीडिया, जनता का आभार है मीडिया, पर अब सब कुछ बदल गया, मीडिया, आसानी से छल गया। देशभक्ति पर वाद-विवाद हो, रोज़गार के […]

मोहब्बत का लॉगआउट

*मोहब्बत का लॉगआउट* पहले कोई पसंद आए, फिर आए नज़दीक, उसके होने से अच्छा लगे ,और तो सब ठीक। ये मोहब्बत भी एक बुख़ार है, यक़ीन करो, उसके मैसेजेस को हर हाल में “सीन” करो। प्यार में आजकल तो ये तकनीक हावी है, कबूतर की जगह फेसबुक ही काफ़ी है। इंस्टाग्राम पर रील्स और स्टोरी […]

अनहोनी, एक अंदेशा

अनहोनी , एक अंदेशा – प्रशांत कुमार शाह ना ज़िंदगी का कुछ पता है, ना अब किसी से कोई ख़ता है। जो होना है वो होगा ही अब, बस देखा जाएगा तब का तब। हर अनहोनी का अंदेशा होता है, इसके बाद इंसान ख़ूब रोता है। पर इस पर अब ज़ोर किसका है, ये तो […]

अनहोनी, इक अंदेशा

प्रतियोगिता ~ बोलती कलम विषय ~ अनहोनी , इक अंदेशा कल नही तो आज होगा , होगा वही जो होना होगा , फल की इच्छा की है तो बीज भी अच्छा बोना होगा , अनहोनी जब होती है, हम निःशब्द और दिमाग शून्य हो जाता है , हमारे सारे कर्मो का परिणाम ही हमारे खाते […]

जलवायु परिवर्तन , जिंम्मेदार कौन

प्रतियोगिता – बोलती कलम विषय – जलवायु परिवर्तन ,कौन जिंम्मेदार…. यूँ मौन चुप चाप खड़ी प्रकति कर रही सवाल , हरी भरी थी मैं कभी चारो और था हरा जाल , क्यों की तुमने पेड़ो की कटाई क्यों ये जंगल काटे , सीमेंट कंक्रीट बिछाकर मेरे आँचल मे ये दुःख बांटे । ग्लोबल वार्मिंग के […]

जलवायु परिवर्तन, कौन जिम्मेदार

जलवायु परिवर्तन, कौन ज़िम्मेदार (प्रशांत कुमार शाह) माना युद्ध ज़रूरी है देश के लिए, अपने समाज और परिवेश के लिए। पर क्या इसका दूसरा पक्ष देखा है? बम और गोले ने कब प्रदूषण रोका है? दिवाली पर पटाखे और फुलझड़ी, और लोग जलाएं लंबी वाली लड़ी। पर क्या इसका अंजाम जानते हैं? जलवायु परिवर्तन कहाँ […]

कलम की धार तलवार से तेज

कलम की धार तलवार से तेज है, आज के दौर में यह बात और भी स्पष्ट है। सोशल मीडिया पर कलम की शक्ति, लोगों के विचारों को बदल देती है। कलम से लिखे शब्दों का प्रभाव, तलवार की धार से कहीं अधिक है। यह न केवल विचारों को फैलाती है, बल्कि समाज को भी बदलने […]

कलम की धार , तलवार से तेज

प्रतियोगिता ~बोलती कलम “कलम की धार, तलवार से तेज ~ कलम की धार बहुत तेज चलती है , सीधे दिल पर आकर रुकती है , हो जाता है इसका असर बहुत गहरा अंदर से झकझोर कर रख देती है । शब्द कम पड़ते है इसकी तारीफ में , इससे लिखे लफ़्ज़ उतरते है दिल में […]