*सखी, वो कह कर जाते* (दो सखियों के बीच संवाद) व्याह रचाया और फिर सखी, छोड़ दिया, सुहाग ने ज़िंदगी को कैसा मोड़ दिया। मैं तो नहीं रोकती, गर उनको जाना ही था, वो ही एक थे जिनको अपना माना था। क्या हुआ कि मैं आधुनिक नहीं हूँ बताओ, क्या है मेरी सौत में? मुझे […]
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वो तोड़ती पत्थर
*”वो तोड़ती पत्थर”* (*एक विधवा की स्थिति*) देखा है मैंने आज एक विधवा को, पेट की खातिर पहाड़ तोड़ते हुए। गोद में बच्चा, हाथों में कुदाल, घर-परिवार का इससे क्या बुरा हाल? धूप भी तेज, बारिश मूसलधार, गरीबी से बढ़कर नहीं कोई धिक्कार। पेट और बच्चों के लिए करना है काम, विधवा है तो क्या, […]
अब यह चिड़ियां कहाँ रहेगी
*अब यह चिड़ियां कहाँ रहेगी* न पेड़ बचा, न कोई बचा एक भी वन, लोग लगा रहे हैं घर में कृत्रिम उपवन। दिल नहीं शांत, और दिमाग चाहे पैसा, घोंसले उजाड़, पिंजरे में दिया जीवन। कहाँ गई वो मैना और चहचहाती गौरैया, जिसे सुनकर तो हल्का होता था मन। देख ये दुर्दशा, जीव-जंतु हैं बहुत […]
भीड़ में रहकर अकेले हैं
*भीड़ में रहकर अकेले हैं* ( आज के समाज और संस्कार पर तंज़) बदल गया दौर देखो अब एक पल में, खूबसूरत लम्हे बीत गए गुज़रे कल में। नानी और दादी का घर बहुत वीरान है, बच्चे और युवा इंटरनेट के लिए कुर्बान हैं। हाथों-हाथ मोबाइल फोन, कैसा मंजर है, जानने वाले हैं बहुत, पर […]
नेता बदलते हैं, नीयत नहीं
*नेता बदलते हैं, नीयत नहीं* आज़ाद भारत में रहते हैं हम, ख़ुद को आज़ाद कहते हैं हम। पर विकास का पैमाना क्या है? नई युग और नया ज़माना क्या है? सदियों पुरानी इमारत ज़िंदा है, और आज के मकान शर्मिंदा हैं। मेडिकल का हाल वही पुराना है, बुखार के अलावा क्या जाना है? स्कूल, कॉलेज […]
न्यूज एंकर बनाम न्यूज
*न्यूज़ एंकर बनाम न्यूज़* क्या है, जो अब जाना जाए, और किसे सत्य माना जाए? सब तो मन से हैं, बस बोलते, और विपक्ष को हैं, बस रौंदते। जनतंत्र का आधार है मीडिया, जनता का आभार है मीडिया, पर अब सब कुछ बदल गया, मीडिया, आसानी से छल गया। देशभक्ति पर वाद-विवाद हो, रोज़गार के […]
मोहब्बत का लॉगआउट
*मोहब्बत का लॉगआउट* पहले कोई पसंद आए, फिर आए नज़दीक, उसके होने से अच्छा लगे ,और तो सब ठीक। ये मोहब्बत भी एक बुख़ार है, यक़ीन करो, उसके मैसेजेस को हर हाल में “सीन” करो। प्यार में आजकल तो ये तकनीक हावी है, कबूतर की जगह फेसबुक ही काफ़ी है। इंस्टाग्राम पर रील्स और स्टोरी […]
अनहोनी, एक अंदेशा
अनहोनी , एक अंदेशा – प्रशांत कुमार शाह ना ज़िंदगी का कुछ पता है, ना अब किसी से कोई ख़ता है। जो होना है वो होगा ही अब, बस देखा जाएगा तब का तब। हर अनहोनी का अंदेशा होता है, इसके बाद इंसान ख़ूब रोता है। पर इस पर अब ज़ोर किसका है, ये तो […]
अनहोनी, इक अंदेशा
प्रतियोगिता ~ बोलती कलम विषय ~ अनहोनी , इक अंदेशा कल नही तो आज होगा , होगा वही जो होना होगा , फल की इच्छा की है तो बीज भी अच्छा बोना होगा , अनहोनी जब होती है, हम निःशब्द और दिमाग शून्य हो जाता है , हमारे सारे कर्मो का परिणाम ही हमारे खाते […]
जलवायु परिवर्तन , जिंम्मेदार कौन
प्रतियोगिता – बोलती कलम विषय – जलवायु परिवर्तन ,कौन जिंम्मेदार…. यूँ मौन चुप चाप खड़ी प्रकति कर रही सवाल , हरी भरी थी मैं कभी चारो और था हरा जाल , क्यों की तुमने पेड़ो की कटाई क्यों ये जंगल काटे , सीमेंट कंक्रीट बिछाकर मेरे आँचल मे ये दुःख बांटे । ग्लोबल वार्मिंग के […]