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Jaliyavala bag hatyakand

जब बाग में खून बरसा था…जलियांवाला चैत की दोपहर थी, उम्मीदें जवाँ थीं, धरती की छाती पर आज़ादी की दुआ थी। पर नफ़रत की नज़र ने जो बारूद बोया, जलियांवाले बाग़ में, वही मौत का साया था। ना तलवार थी, ना कोई बगावत, बस हाथों में तिरंगे की मासूम सी चाहत। माँओं की गोद, बच्चों […]