सखी, ‌वो कह कर जाते

सखी, वो कह कर जाते…

सखी, वो कह कर जाते,
फिर मिलने का वादा वो करते।
दिल में सपनों की लौ वो जलाते,
पर दूर कहीं अचानक वो खो जाते।

सखी, वो चुपके से मुस्कुराते,
बातों में अपनापन वो लाते।
यादों के मोती दिल में वो बोते,
पर हमें अकेला वो छोड़ जाते।

सखी, वो आँखों से सब कह जाते,
आँसू भी हँसी में वो बहाते।
दर्द छुपाकर हमें वो समझाते,
फिर भी दिल से दूर वो हो जाते।

सखी, वो साथ के रंग सजाते,
हर लम्हे में खुशबू वो लाते।
वादा निभाने की कसम वो खाते,
पर राह बदलकर वो चले जाते।

सखी, वो मन में आज भी बसते,
दुआओं में हरदम हम उन्हें ही वो रखते।
आज फिर यादों के झरोखे वो खोले,
मैथिलीशरण की पंक्तियों में वो बोले—

हर पल उनकी यादें साथ होती हैं,
जैसे कोई मीठा गीत दिल गुनगुनाता हो।
गार्गी कहती है सखी सुनो ज़रा,
उनकी यादों के सहारे हम फिर आज जी उठे।

©गार्गी गुप्ता

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